कल्पवृक्ष / Kalpavriksha Plant
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कल्पवृक्ष’ का नाम आपने कहीं न कहीं जरूर सुना होगा। लेकिन मुमकिन है कि कभी देखा न हो। इसे देवलोक का वृक्ष माना जाता है। इसे कल्पद्रुप, कल्पतरु, सुरतरु देवतरु तथा कल्पलता जैसे नामों से भी जाना जाता है। पुराणों के अनुसार समुद्रमंथन से प्राप्त 14 रत्नों में कल्पवृक्ष भी एक था।
कल्पवृक्ष स्वर्ग का एक विशेष वृक्ष है। पौराणिक धर्म ग्रंथों और हिन्दू मान्यताओं के अनुसार यह माना जाता है कि इस वृक्ष के नीचे बैठकर व्यक्ति जो भी इच्छा करता है, वह पूर्ण हो जाती है।
आयुर्वेद की दृष्टि से इस दुर्लभ वृक्ष का औषधीय महत्व है। इस पेड़ का उदभव अफ्रीका के जंगल में हुआ और ये भारत में कहीं कहीं पाया जाता है।
1. इसकी पत्तियां उम्र बढ़ाने में सहायक होती हैं, क्योंकि इसके इसके पत्तो में एंटी-ऑक्सीडेंट होता है.
2. विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) के अनुसार हमारे शरीर में आवश्यक 8 अमीनो एसिड में से 6 इस वृक्ष में पाए जाते हैं।
3. यह एक परोपकारी वृक्ष है। इसमें संतरे से 6 गुना ज्यादा विटामिन ‘सी’ होता है। गाय के दूध से दोगुना कैल्शियम होता है।
4. इस वृक्ष की 3 से 5 पत्तियों का सेवन करने से हमारे दैनिक पोषण की जरूरत पूरी हो जाती है। यह कब्ज और एसिडिटी में सबसे कारगर है।
5. इसके पत्तों में एलर्जी, दमा, मलेरिया को समाप्त करने की शक्ति है। गुर्दे के रोगियों के लिए भी इसकी पत्तियों व फूलों का रस लाभदायक है।
6. इसके बीजों का तेल हृदय रोगियों के लिए लाभकारी होता है। इसके तेल में एचडीएल (हाईडेंसिटी कोलेस्ट्रॉल) होता है। इसके फलों में भरपूर रेशा (फाइबर) होता है। मानव जीवन के लिए जरूरी सभी पोषक तत्व इसमें मौजूद रहते हैं।
7. गुर्दे के रोगियों के लिए भी इसकी पत्तियों व फूलों का रस लाभदायक सिद्ध हुआ है।
8. यह वृक्ष जहां भी बहुतायत में पाया जाता है, वहां सूखा नहीं पड़ता। यह रोगाणुओं का डटकर मुकाबला करता है।
9. इस वृक्ष की खासियत यह भी है कि कीट-पतंगों को यह फटकने नहीं देता और दूर-दूर तक वायु के प्रदूषण को समाप्त कर देता है।
इस वृक्ष की छा ल, फल, फूल आदि का उपयोग औषधि बनाने में की जाती है।
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